मेरा नाम सरिता सिंह है समाज सेवा कहानी लिखने तथा नारी जीवन एवं संघर्ष पर लेख एवं कविताएं लिखने का शौक है जन्म आजमगढ़ की ग्रामीण पृष्ठभूमि पर अनुसूचित जाति परिवार में हुआ।मेरे पिता एक गरीब किसान है दादादादी की असमय मृत्यु हो जाने के कारण पिताजी ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाए। परंतु उनकी अभिलाषा थी कि उनके बच्चे पढ़ लिख कर समाज में खड़े हो सके। केवल खेती से पेट नहीं भरता इसीलिए उन्होंने शहर आकर मेहनत मजदूरी करके हम भाई बहनों को पढ़ाया लिखाया दो भाइयों की मैं अकेली बहन हूं पर मैंने स्वयं को कभी लड़की नहीं समझा मैंने स्वयं को अपने घर का बेटा समझ कर पढ़ाई के साथ साथ ट्यूशन करके अपने परिवार की हमेशा मदद की स्कॉलरशिप के पैसों से पढ़कर मैं यहां तक पहुंची किताबों की हमेशा कमी रहती थी केवल कुछ नोट्स फोटोकॉपी करा कर पढ़ लेती कभी ट्यूशन इत्यादि भी नहीं लिया जुट जाए यही बहुत था। बीए के बाद प्राइवेट कंपनियों में छोटी मोटी नौकरियां Reliance telecaller, Symbian company , एक KPO machwan.in , consim info इत्यादि में नौकरी करते मुझे एमबीए करने का मार्गदर्शन शिवानी मैम से मिला। एमबीए किया तत्पश्चात मुझे अच्छी नौकरियां मिली। निम्न वर्गीय परिवार होने से बहुत दूर नौकरी को भी ना जा पाए परंतु हां अपने ही प्रदेश में नौकरी करते परिवार का काफी सहयोग किया और कंपनियों में भी अच्छा प्रदर्शन किया सभी लोग मुझे मेरे काम से जानते हैं रिसर्च इंडिया NGO मैनेजर के पद पर कार्य किया।तत्पश्चात विवाह हो गया 2009 में गोरखपुर आ गई यहां की पारिवारिक पृष्ठभूमि ग्रामीण थी एमबीए को विशेष प्रोत्साहन ससुराल में नहीं मिला तत्पश्चात b.Ed किया और टीचर बनने की तैयारी की दौरान घर का सारा काम कल मुझे पढ़ने भी जाना होता और साथ में एक छोटा बच्चा वह भी मेरी जिम्मेदारी परिस्थितियों मैं मैंने भी b.ed प्रथम श्रेणी से किया 2013 मैं शिक्षक पात्रता परीक्षा भी पास की विगत वर्ष2018 एक बार फिर शिक्षक पात्रता परीक्षा पास की नौकरी की तैयारी अनवरत प्रयास जारी था घर के सभी काम कर देर रात तक छुपकर पड़ती. कभी-कभी सुबह देर से नींद खुलने पर ससुराल में डांट भी पड़ती थी परंतु मैंने अपने पढ़ने का प्रयास जारी रखा 2015 में अंततः मेरा प्रयास सफल रहा ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में रोगी सहायता केंद्र मैनेजर के पद पर मेरी नियुक्ति हुई के लिए मुझे गोरखपुर से गोंडा ट्रेन से जाना रहता मैंने हार नहीं मानी और अपनी नौकरी जारी रखी. साथ साथ अन्य नौकरियों के लिए प्रयास भी जारी रखें 2015-16 में दोबारा मेरी नियुक्ति स्वास्थ्य विभाग के एक अन्य पद पीएमडब्ल्यू (paramedical worker ) कुष्ठ रोग विभाग में हो गई. यह नौकरी मेरे जीवन में थोड़ी प्रसंता लाइ . छोटे बच्चों के साथ दूसरे जिलों मैं जाकर नौकरी करना थोड़ा दुष्कर था अपने ही जिले में नौकरी पाकर मुझे बहुत हर्ष का अनुभव हुआ. विगत 5 वर्षों से मैं जिला कुष्ठ कार्यालय में पैरामेडिकल वर्कर के पद पर कार्य कर रही हूं. समाज सेवा का शौक मुझे शुरू से था इसीलिए ग्रामीण विकास विषय लिया ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर कुष्ठ रोगियों को कुष्ठ के बारे में जानकारी देती हूं अस्पताल से उन्हें दवाई दिलाना विभाग से मिले अन्य सुविधाओं पेंशन इत्यादि के बारे में बताना ही हमारा प्रमुख कार्य रहता है करने में मुझे आंतरिक सुख का अनुभव होता है ग्रामीण जैन की सेवा करना एवं उनको पृष्ठभूमि से जोड़कर उनका विकास करना इसी सपने को लेकर मैंने ग्रामीण विकास की पढ़ाई की मैं DM या कलेक्टर तो ना बन पाए परंतु हां अपने कठिन प्रयासों विषम परिस्थितियों जो भी बन पाई उसमें पूरी लगन से निस्वार्थ कार्य किया....... मैं प्रारंभ से ही देश की परिस्थितियों नारी की दशा गरीबी भुखमरी और कुप्रथा पर लिखना चाहती थी जब पेट नहीं भरा होता तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता और भरे पेट पर सब कुछ सुहाता है आज मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं अपनी व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा समय निकालकर लेख और कविताएं लिखती हूं मेरी कई रचनाएं तरंगिणी पत्रिका एवं साहित्य नामा में प्रकाशित हुई हैं आगे भी प्रयास जारी रहेगा अपने पिता की मजदूरी का पसीना मैं जाया नहीं होने देना चाहती इसीलिए जब तक जीवित रहूंगी उनके लिए कुछ ना कुछ करती रहूंगी जो सपने पिताजी ने स्वयं के लिए देखा उनकी आंखों के उस सपने को स्वयं में देखकर पूरा करती रहूंगी...... नाम सरिता है जहां जाती हूं विस्तार करती हूं ।मैं अनवरत अविरल बहती रहूंगी ।ना रूकूंगी कभी किसी पथ पर । मिलेगा एक दिन समुंदर मुझे।कर्म पथ पर यूं ही बढ़ती रहूंगी।